आज हम आपके लिए Tehzeeb Hafi Shayari लेकर आये है। आज दुनियां में तहज़ीब हाफी का नाम कौन नहीं जानता। तहज़ीब हाफी की शायरी में जीवन सच्चाई के साथ उसमें गहराई भी छिपी होती है। इनके शायरियों को पढ़ने का अपना ही अलग अंदाज़ है जो सीधा दिल को छू जाती है। इसलिए आज हम आपके सामने 50+ Tehzeeb Hafi Shayari का कलेक्शन लाये है।
गले तो लगना है उस से कहो अभी लग जाए,
यही न हो मेरा उस के बग़ैर जी लग जाए,
मैं आ रहा हूँ तेरे पास ये न हो कि कहीं,
तेरा मज़ाक़ हो और मेरी ज़िंदगी लग जाए।
हाँ ये सच की मोहब्बत नहीं की,
दोस्त बस मेरी तबियत नहीं की,
इसलिए गाँव में सैलाब आया,
हमने दरियाओं की इज़्ज़त नहीं की।
अब उस जानिब से इस कसरत से तोहफ़े आ रहे हैं,
कि घर में हम नई अलमारियाँ बनवा रहे हैं।
सबकी कहानी एक तरफ है मेरा किस्सा एक तरफ,
एक तरफ सैराब हैं सारे और मैं प्यासा एक तरफ,
मैंने अब तक जितने भी लोगों में खुद को बांटा है,
बचपन से रखता आया हूँ तेरा हिस्सा एक तरफ।
तपते सहराओं में सब के सर पे आँचल हो गया,
उसने ज़ुल्फ़ें खोल दीं और मसअला हल हो गया।
मुझसे कल वक़्त पूछा किसी ने,
कह दिया के बुरा चल रहा है,
उसने शादी भी की है किसी से,
और गाँव में क्या चल रहा है।
क्या ग़लत-फ़हमी में रह जाने का सदमा कुछ नहीं,
वो मुझे समझा तो सकता था कि ऐसा कुछ नहीं,
इश्क़ से बच कर भी बंदा कुछ नहीं होता मगर,
ये भी सच है इश्क़ में बंदे का बचता कुछ नहीं।
Tehzeeb Hafi Shayari
लबों से लफ्ज़ झड़े आँख से नमी निकले,
किसी तरह तो मेरे दिल से बेदिली निकले,
मैं चाहता हूँ परिंदे रिहा किये जाए,
मैं चाहता हूँ तेरे होंठ से हंसी निकले।
उस लड़की से बस अब इतना रिश्ता है,
मिल जाए तो बात वगैरा करती है,
बारिश मेरे रब की ऐसी नेमत है,
रोने में आसानी पैदा करती है।
उसी ने दुश्मनों को बाख़बर रखा हुआ है,
ये तूने जिसको अपना कहके घर रखा हुआ है,
मेरे कांधे पे सर रहने नहीं देगा किसी दिन,
यही जिसने मेरे कांधे पे सर रखा हुआ है।
मैं उस से ये तो नहीं कह रहा जुदा न करे,
मगर वो कर नहीं सकता तो फिर कहा न करे,
वो जैसे छोड़ गया था मुझे उसे भी कभी,
ख़ुदा करे कि कोई छोड़ दे ख़ुदा न करे।
तेरा चुप रहना मेरे ज़ेहन में क्या बैठ गया,
इतनी आवाज़ें तुझे दी की गला बैठ गया,
यूँ नहीं है के फकत मैं ही उसे चाहता हूँ,
जो भी उस पेड़ की छाओं में गया बैठा गया।
अब इन जले हुए जिस्मों पे ख़ुद ही साया करो,
तुम्हें कहा था बता कर क़रीब आया करो,
मैं उसके बाद महिनों उदास रहता हूँ,
मज़ाक में भी मुझे हाथ मत लगाया करो।
Tehzeeb Hafi Shayari in Hindi
सुना है अब वो आँखें और किसी को रो रही है,
मेरे चश्मों से कोई और पानी भर रहा है,
बहुत मजबूर होकर मैं तेरी आँखों से निकला,
ख़ुशी से कौन अपने मुल्क़ से बाहर रहा है।
ज़ेहन से यादों के लश्कर जा चुके,
वो मेरी महफ़िल से उठ कर जा चुके,
मेरा दिल भी जैसे पाकिस्तान है,
सब हुकूमत करके बाहर जा चुके।
मैंने जो कुछ भी सोचा हुआ है,
मैं वो वक़्त आने पे कर जाऊँगा,
तुम मुझे ज़हर लगते हो,
और मैं किसी दिन तुम्हें पी के मर जाऊँगा।
अब इन जले हुए जिस्मों पे खुद ही साया करो,
तुम्हें कहा था बता कर करीब आया करो,
मैं उसके बाद महीनों उदास रहता हूँ,
मज़ाक में भी मुझे हाथ मत लगाया करो।
ये दुक्ख अलग है कि उससे मैं दूर हो रहा हूँ,
ये ग़म जुदा है वो ख़ुद मुझे दूर कर रहा है,
तेरे बिछड़ने पर लिख रहा हूँ मैं ताज़ा ग़ज़लें,
ये तेरा ग़म है जो मुझको मशहूर कर रहा है।
थोड़ा लिखा और ज़्यादा छोड़ दिया,
आने वालों के लिए रस्ता छोड़ दिया,
तुम क्या जानो उस दरिया पर क्या गुज़री,
तुमने तो बस पानी भरना छोड़ दिया।
Tehzeeb Hafi Shayari Love
अब ज़रूरी तो नही है कि वो सब कुछ कह दे,
दिल मे जो कुछ भी हो आँखों से नज़र आता है,
मैं उससे सिर्फ ये कहता हूं कि घर जाना है,
और वो मारने मरने पे उतर आता है।
तारिखियों को आग लगे और दिया जले,
ये रात बेन करती रहे और दिया जले,
तुम चाहते हो तुमसे बिछड़ कर भी खुश रहूं,
यानी हवा भी चलती रहे और दिया जले।
इसीलिए तो सबसे ज़्यादा भाती हो,
कितने सच्चे दिल से झूठी क़समें खाती हो।
ये एक बात समझने में रात हो गई है,
मैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है,
जैसे तुमने वक़्त को हाथ में रोका हो,
सच तो ये है तुम आँखों का धोख़ा हो।
तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया,
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया,
कौन तुम्हारे पास से उठ कर घर जाता है,
तुम जिसको छू लेती हो वो मर जाता है।
मैं उससे ये तो नहीं कह रहा जुदा ना करे,
मगर वो कर नहीं सकता तो फिर कहा ना करे,
वो जैसे छोड़ गया था मुझे उसे भी कभी,
खुदा करे के कोई छोड़ दे खुदा ना करे।
Tehzeeb Hafi Shayari Status
एक और शख़्स छोड़कर चला गया तो क्या हुआ,
हमारे साथ कौन सा ये पहली मर्तबा हुआ।
ये दुःख अलग है के उससे मैं दूर हो रहा हूँ,
ये गम जुदा है वो खुद मुझे दूर कर रहा है,
तेरे बिछड़ने पे मैं लिख रहा हूँ ताज़ा ग़ज़लें,
ये तेरा गम है जो मुझको मशहूर कर रहा है।
एक इधर मैं हूँ के घर वालों से नाराज़गी है,
एक उधर तू है के गैरों का कहाँ मानता है,
मैं तुझे अपना समझकर ही तो कुछ कहता हूँ,
यार तू भी मेरी बातों का बुरा मानता है।
इसीलिए तो सबसे ज़्यादा भाती हो,
कितने सच्चे दिल से झूठी क़समें खाती हो।
ये किसने बाग़ से उस शख्स को बुला लिया है,
परिंदे उड़ गए पेड़ों ने मुँह बना लिया है,
उसे पता था मैं छूने में वक़्त लेता हूँ,
सो उसने वस्ल का दौरनियाँ बढ़ा लिया है।
उसी जगह पर जहाँ कई रास्ते मिलेंगे,
पलट के आए तो सबसे पहले तुझे मिलेंगे।
Tehzeeb Hafi Shayari Images
उसके हाथों में जो खंजर है ज़्यादा तेज़ है,
और फिर बचपन से ही उसका निशाना तेज़ है,
जब कभी उस पार जाने का ख्याल आता मुझे,
कोई आहिस्ता से कहता था की ये दरिया तेज़ है।
ये किस तरह का ताल्लुख है आपका मेरे साथ,
मुझे ही छोड़ कर जाने का मशवरा मेरे साथ।
पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा,
मैं भीग जाऊँगा छतरी नहीं बनाऊँगा।
ज़िन्दगी भर फूल ही भिजवाओगे,
या किसी दिन खुद भी मिलने आओगे,
खुद को आईने में कम देखा करो,
एक दिन सूरजमुखी बन जाओगे।
मैं उस से ये तो नहीं कह रहा जुदा न करे,
मगर वो कर नहीं सकता तो फिर कहा न करे।
ये मैंने कब कहा के मेरे हक़ में फैसला करे,
अगर वो मुझसे खुश नहीं है तो मुझे जुदा करे,
मैं उसके साथ जिस तरह गुज़ारता हूँ ज़िन्दगी,
उसे तो चाहिए के मेरा शुक्रिया अदा करे।
Tehzeeb Hafi Shayari Hindi Lyrics
क्या ख़बर कौन था वो और मेरा क्या लगता था,
जिससे मिलकर मुझे हर शख़्स बुरा लगता था।
महीनों बाद दफ्तर आ रहे हैं,
हम एक सदमे से बहार आ रहे हैं,
समंदर कर चूका तस्लीम हमको,
ख़ज़ाने खुद ही ऊपर आ रहे हैं।
ये एक बात समझने में रात हो गई है,
मैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है।
मैं ज़िन्दगी में आज पहली बार घर नहीं गया,
मगर तमाम रात दिल से माँ का डर नहीं गया,
बस एक दुःख जो मेरे दिल से उम्र भर न जायेगा,
उसको किसी के साथ देख कर मैं मर नहीं गया।
उसी ने दुश्मनों को बाख़बर रखा हुआ है,
ये तूने जिसको अपना कहके घर रखा हुआ है,
मेरे कांधे पे सर रहने नहीं देगा किसी दिन,
यही जिसने मेरे कांधे पे सर रखा हुआ है।
अब इन जले हुए जिस्मों पे ख़ुद ही साया करो,
तुम्हें कहा था बता कर क़रीब आया करो।
कोई समंदर, कोई नदी होती कोई दरिया होता,
हम जितने प्यासे थे हमारा एक गिलास से क्या होता,
ताने देने से और हम पे शक करने से बेहतर था,
गले लगा के तुमने हिजरत का दुख बाट लिया होता।
क्या ख़बर कौन था वो और मेरा क्या लगता था,
जिससे मिलकर मुझे हर शख़्स बुरा लगता था।
सब परिंदों से प्यार लूँगा मैं,
पेड़ का रूप धार लूँगा मैं,
रात भी तो गुजार ली मैंने,
जिन्दगी भी गुजार लूंगा मैं।
अब मज़ीद उससे ये रिश्ता नहीं रक्खा जाता,
जिससे इक शख़्स का पर्दा नहीं रक्खा जाता,
एक तो बस में नहीं तुझसे मोहब्बत ना करूँ,
और फिर हाथ भी हल्का नहीं रक्खा जाता।
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