हर पीड़ा हर दुःख को वो हसके झेल जाता है, बच्चो के लिए पिता काल से भी खेल जाता हैं।
मेरी खातिर तेरा रोटी पकाना याद आता है, अपने हाथों को चूल्हे में जलाना याद आता है, वो डांट-डांट कर खाना खिलाना याद आता है, मेरी खुशियों के लिए तेरा पैसा बचाना याद आता है।
सख्त राहों में भी आसान सफर लगता है, ये मेरी माँ की दुआओं का असर लगता हैं।
कुछ ना पा सके तो क्या गम है, माँ-बाप को पाया है ये क्या कम है, जो थोड़ी सी जगह मिली इनके कदमों में, वो क्या किसी जन्नत से कम हैं।
घेर लेने को मुझे जब भी बलाएँ आ गईं, ढाल बन कर सामने माँ-बाप की दुआएँ आ गईं।
सब कुछ मिल जाता है दुनिया में मगर, याद रखना की बस माँ-बाप नहीं मिलते, मुरझा कर जो गिर जाये एक बार डालों से, ये ऐसे फूल है जो फिर नहीं खिलते।
मेरी गलतियों को वो माफ कर देती है, बहुत गुस्से में होती है तो भी प्यार देती है, होठों पे उसके हमेशा दुआ होती है, ऐसी सिर्फ और सिर्फ “माँ” होती है।
माँ की अजमत से अच्छा जाम क्या होगा, माँ की खिदमत से अच्छा काम क्या होगा, खुदा ने रख दी हो जिसके क़दमों में जन्नत, सोचो उसके सर का मुकाम क्या होगा।
जिसके होने से मैं खुदको मुक्कम्मल मानता हूँ, मेरे रब के बाद मैं बस अपने माँ-बाप को जानता हूँ।
बंद किस्मत के लिये कोई ताली नही होती, सुखी उम्मीदों की कोई डाली नही होती। जो झुक जाए माँ-बाप के चरणों में, उसकी झोली कभी खाली नही होती।